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खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेली पियु के संग|

CHANDRASAKHI
CHANDRASAKHI
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कितने सावन बीत गए,अब तक नहीं आये! मन-मयूर नाचे निशि-वासर तुम नहीं आये१! प्रेम-पाग में पगी विह्वल मैं सोचूँ,कहाँ तुम नैन लगे निशिदिन मैं सोचूँ.| विकल चाँदनी-रात हुई मदमाती रैना| दिल में बंधत न धीर,आये ना मन को चैना|| मेरे प्राण-आधार करूँ मैं कौन जतन| हो जांयें हम एक मिले अनमोल रतन|| आयी बसंत-बयार खिली मन की फुलवारी| मदमाती-मद गंधचहुँ दिशि बहे बयारी|| बौरे आम, बौरी बाम फिरे मद-माती| कोयल गाये गान,मैं कर मल-मल पछिताती|| भीनी-भीनी गंध बागान महुआ गदराये| भौंरा पुनि-पुनि आइ संदेसा मुझे सुनाये|| किंशुक कुसुम पलाश ढाक पुनि सरसों फूली| आग लगाएं सभी दिलाएं मुझको शूली|| पञ्च-बाण लखि चन्द्रसखी मन में बौराई| प्रणय-निवेदन कियो पीया तुम बनो सहाई|| नीवी-बन्ध को पकरि खोंसि लंहगा अरु सारी| मुख-चुम्बन में मगन भाई रतिपति मतवारी| “चन्द्रसखी के श्याम उचकी गागर उठवाई| नयन चोट करि श्याम गए, मन को बिलमाई|| बी.के चन्द्रसखी जय हिन्द |||

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