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मैंने कभी एक सपना देखा था, जब २०१२ में मेरे मष्तिष्क में एक कीड़ा कुलबुलाया की मैं भी प्रधानमन्त्री बन सकता हूँ हुआ यूं की मई गहरी नींद में सोया हुआ था, मैंने देखा कि हिन्दुस्तान कि सभी गाड़ियों पर लोहिया जी के झंडे के नीचे लिखा है, मिशन २०१४, फिर क्या था? हल्कू कि तरह मैं भी २०१४ की फसल रखवाली में जुट गया और अपने झबरा से कहा की फसल की रखवाली के लिए जो कुछ भी करना है करो, लैपटॉप बांटो, बेरोज़गारी भत्ता बांटो,अल्पसंख्यको में डर पैदा करो बालिका भत्ता बांटो, खूब पैसा लुटाओ,पर मिशन२०१४ पूरा होना चाहिए| सभी जी तोड़ मेहनत में लग गए| खूब नौजवानो को मशीने बांटीं पैसा बांटा, सब कुछ बांटा इतने में इस प्रदेश में दंगे हो गए| वहां भी पैसा पानी की तरह बहाया पर हाय! लोहिया जी आप के कोई सूत्र काम आ जाते? अब महासमर प्रारम्भ हो चूका है मैं और मेरा प्यारा फसल बचाने में व्यस्त हैं, अब और अधिक व्यग्र हो गया हूँ| उग्रता बढाती जा रही है| अब लड़ाई अधिक संगीन हो गयी है| अल्पसंख्यकों का भूत मुझे रात-दिन डरा रहा है,उन्हें मैं विश्वास दिलाता हूँ कि सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता से दूर रखना है तो मुझे चुनिए| कभी नौजवान नेता वयस्क गुजराती शेर से ३६ इंच सीने कि बात करता है यहां तक कि सांड , भेड़िये, बघेरों की शेरों की बात से आगे नहीं बढ़ पाये| अब चुनाव हुए, तो परिणाम की व्यग्रता ने बेचैनी बढ़ा दी है| परिणाम आये तब तक मेरी नींद टूट चुकी है और पाया की मेरे सपनों की दुनिया ढह गयी है और मैं अपने परिवार की लाज को मुश्किल से बचा पाया हूँ| अब तो भगवान ही मालिक है चलो झबरा अब घर चले फसल तो नील गाय चर गए हैं| बेचारी झुनियाँ रोयेगी| हल्कू धीमी-धीमी चाल से घर चल दिया| अब उसे अहसास हुआ कि जो उसने सपना देखा था वह ठीक नहीं था| परिवार तो बच गया लेकिन लोहिया जी कि फसल पकने से पाहिले नीलगाय चर गयीं है. ” वे मौजें सर पटकतीं हैं जिन्हें साहिल नहीं मिलता |” जय हिन्द बी.के. चन्द्रसखी
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