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गंगा जी के घाट पै मेला लग्यो अपार| पानी बिनु लाशें चलीं देखो नैन निहार|| मदिरा माँ को देखियो! लागो खूब बाजार| मरते हों तो मरण दो होवै बेडा पार| अजी आप क्या-क्या दोहे बना कर सुनते हैं?यह सब चलेगा हा!हा!कर करो चाहे छाती पीट-पीटकर रोते रहो किसी के कान पर जूँ नहीं रेंगने वाला है| गंगा भी उन्हीं की अंगूर की बेटी भी उन्ही की, बस मरने वाले लोग आम जनता के हैं,चाहे सौ-सौ लाशें उतराकर आवैं या मदिरा माँ कई सौ लोगो को निगल जावे जाँचें चलेंगीं और फाइलें चलते-चलते समय बीत जायेगा, आम जनता तब तक सब कुछ भूल चुकी होगी| फिर कोई और नया शिगूफा छेड़ दिया जायेगा, गंगा माँ तो साफ़ नहीं होगी उसमें हम सब भी तो दोषी हैं| हम सब काम सरकार पर छोड़ देते हैं| सरकार में भी तो हमसभी सम्मिलित हैं| यह आवश्यक नहीं कि सब काम सरकार करे हम गंगा को गन्दा करें और सरकार साफ़ करे माना महानगरों की गन्दगी भी सरकारों की योजनाओ का प्रतिफल है, तो इसमें हमारा भी तो हिसा है, हम साड़ी गन्दगी नदियों में ही बहा रहे है| आधी-जलीं लाशें,मरे जानवर, कूड़ा-करकट और सारा का सारा अपशिष्ट गंगा माँ और जमुना माँ को समर्पित करते हैं यह नहीं होना चाहिए, सीवर गंदे नाले चर्म-शोध का अपशिष्ट भी गंगा को समर्पित हो रहा है, यह सब सरकार और हमारी नाकामी है, कभी हम जातिवाद, समाजवाद, परिवारवाद,व्यक्तिवाद के वशीभूत होकर सत्ता ऐसे हाथों में सौंप देते हैं जो महोत्सवों उद्घाटनों और कई-कई शिलान्यासों का उदघाटन करते करते हम भी शिलावत होकर रह जाते हैं, फिर बाद में पछिताते हैं कि सरकार कुछ नहीं कर रही है| मदिरा माँ को भी देहात में हमने ही पनपने दिया| सरकारों को राजस्व सबसे अधिक मदिरा, तम्बाकू, गुटखा जैसी चीजों से मिलता है फिर चाहे ठर्रा हो या अंगूरी आपको पीना बहुत जरूरी हम नहीं मरेंगे. न वो मरेंगे क्योंकि जिम्मेवार हम है और हम गर्व से कहते भी हैं ” हम भारत के लोग” वे शपथ भी लेते हैं ” मैं ………….. शपथ लेता हूँ……….. जागो भारत जागो!!! नहीं तो गंगा मैली रहेगी, लाशें आती रहेगीं मदिरा माँ आपको भी निगलती रहेगी| फिर पछताए क्या होत जब चिड़ियाँ चुग गयीं खेत/???? अभी समय है जागो और अपनी भी जिम्मेदारी निभाओ, ” गंगा जी के घाट पे साधू करें पुकार! संगम में गंगा नहीं, कैसे हो उद्धार!!!!!!! आएं एक कदम उत्कृष्टता कि और बढ़ाएंंंं जय हिन्द जय माँ गंगे! बी.के. चन्द्रसखी
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