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“सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” यहहि मेरे देश की मुख्या पहिचान है| परन्तु आजकल मैं बहुत व्यथित हूँ कि आरक्षण का भस्मासुर फिर से उठ खड़ा हुआ है जो अपना हाथ रखने को तैयार ही बैठा है| क्या हो गया है मेरे इस स्वर्ग से सुन्दर देश को? कहीं किसी कि बुरी नज़र तो नहीं लगी है? आरक्षण के आदी तो अब भारत कि हर जाति होना चाहती है मंडल कमीशन ने इसे थाली में परोसकर दिया है जिसे समाज वादियों ने १९९०-९१ में वी.पी सिंह के समय खूब भुनाया है| उसी का प्रतिफल आज मिल रहा है| माना कि समानाधिकार सबको हैं और सबको बराबरी भी चाहिए लेकिन देश सर्वोपरि होना चाहिए| हम अपने अधिकारों कि मांग तो करे लेकिन मासूमों कि लाशों पर नहीं| अब तक ४०० करोड़ की हानि हो चुकी हैं इसकी भरपाई कहाँ से होगी? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सामाजिक बिखराव भीं नहीं होना चाहिए| भारत कि यही तो विशेषता रही है कि सभी समुदाय आपसी मेल-मिलाप से रहते हैं….इसकी यह विरासत है | दूसरों कि लाशो पर मिले अधिकार मानवता के प्रति अपराध भी तो है| हमें ऐसी परिस्थितियों से बचना होगा | आरक्षण यदि अधिकार है तो देश के संविधान कि आत्मा को बचाने का अधिकार भी होना चाहिए| यदि देश ही नहीं रहेगा तो हम नहीं होंगे| अब भी समय है राजनैतिक पार्टियों को संयम बरतना होगा कोई भी ऐसा बयां न दिया जाये जिससे किसी भी समुदाय की भावनाए भड़कें और वो हिंसा पर उतारू हो जाएँ | जातिवाद का विष अब सिर्फ और सिर्फ पार्टियां ही बढ़ा रहीं हैं यह जातिवाद हमारे देश को खोखला बना रहा है | इस से बचना होगा यदि अभी नहीं तो कभी नहीं| मेरा भारत महान तभी बनेगा जब हम सभी इसके बारे में गंभीरता से सोचेंगे….” देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखें”| मेरे मुल्क का ज़र्रा-ज़र्रा ,पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हमने संवरा है किसी की क्या मजाल इधर नज़र करे यह मुल्क हमारा है| कितनी अन्दलीबों इसमें नग़में गुनगुनाये हैं , कितनी कोयिलों अपने राग सुन्दर सुनाये हैं| अजय तुम देख लो इसको वादियां और पर्वत हैं, प्रजापति सोच लो मन में रखवाले भी पर्वत हैं| फ़िदा है ये सखी तुम पर हम हैं पासवा इसके.. दिखाओ ज़ोर अब तुम सब खुदारा हमनवा इसके||||| आइये इसकी विरासत को बचाएं जय हिन्द बी.के. चन्द्रसखी ……..
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